किसी भी बड़े आदमी के मुंह से निकली बात का कोई न कोई मायना जरूर होता है। वो तो उसका अर्थ निकालने वाले पर निर्भर करता है कि वह क्या सोचता है। अब देखो ना, सूबे की सबसे बड़ी पंचायत में शुक्र को जोधपुर वाले अशोक जी भाईसाहब के मुंह से नाथद्वारा वाले प्रोफेसर साहब को मुख्यमंत्री बोलने को लेकर जो बात निकली, उसके कई मायने निकाले जा रहे हैं। मौके की नजाकत को भांप कर भाईसाहब ने अपनी जादूगरी दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। आखिरकार भाईसाहब ने भी अपना मुंह खोल ही दिया कि मेरी जुबान से निकली बात सही भी हो सकती है। अब पीसीसी में ठाले बैठे भाई लोग अपने-अपने हिसाब से मायने निकाल रहे हैं।
राज वालो पर नहीं विश्वास
राज का काज करने वालों का कोई सानी नहीं है। हर बात को घुमाने में माहिर इन भाई लोगों की एक बानगी ने राज करने वालों को भी जता दिया है कि ऐसा-वैसा चलने वाला नहीं है। दरबार के एक रत्न ने विदेश की हवा खाने का सपना देखा और पासपोर्ट के लिए अपने विभाग का काज करने वाले सचिव को सत्यापन प्रमाण पत्र बनाने का हुक्म दे डाला।
आदिवासी इलाके से ताल्लुक रखने वाले रत्न को जवाब मिला कि ये काम जीएडी का है। वहां पहुंचे रत्न को यह कहकर टरका दिया कि यहां तो सिर्फ एनओसी मिलती है। राज करने वालों की लंच केबिन में चर्चा है कि बैठे ठाले कौन मुसीबत मोल ले, पता नहीं दफा 129 का ही मामला पैण्डिंग हो।
अब नंबर में कौन
पहले सूबे का और अब शहरों की सरकार का चुनाव हार चुकी भगवा पार्टी के लोग आॅक्सीजन की तलाश में हैं। वेंटिलेटर तक पहुंच चुकी पार्टी के लिए अब संजीवनी बूटी से कम नहीं है। उसे लाने के लिए हनुमानजी की तलाश है। अनुशासन की दुहाई की आड़ में पार्टी की इस हालत के लिए किसी न किसी को जिम्मेदार भी ठहराया गया है। हर बार हार ने किसी न किसी की बलि ली है। पहले मैडम और बाद में आमेर वाले पूनिया जी। अब किसका नंबर है? इस बार सूची काफी लंबी बताई गई है।
पर्ची का कमाल
शहरों में बल्ले होने के बाद कांग्रेसी भाईयों की हौसलों की उड़ान थम नहीं रही है। हर एक नेता की महत्वाकांक्षा कम होने का नाम ही नहीं ले रही। छोटे पायलट के उत्तराधिकारी के लिए भी जोड़ तोड़ करने वाले भाई लोग दिल्ली में मैडम के दरबार तक में मत्था टेक आए। कुछ भाई लोगों ने मैडम के सामने जूनियर जोशी और किसान के बेटे डॉक्टर साहब के नाम भी परोस दिए। मैडम कुछ फैसला करती, इससे पहले एक और पर्ची थमा दी गई। पर्ची का असर भी जोरदार रहा। पर्ची में केवल यह लिखा था कि यह कैसी कांग्रेस है कि राजस्थान में साठ साल के बाद भी दलित और अल्पसंख्यक तबके के लोग संगठन की कुर्सी तक नहीं पहुंच पाएं।
एक जुमला यह भी
इन दिनों राजधानी के सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा वालों के ठिकाने पर एक चर्चा जोरों पर है। ठिकाने पर रोजाना आने वाले कार्यकर्ता आपसी संवाद में कबूल करते हैं कि बिना स्ट्रोंग लीडरशिप के मतदाता वोट नहीं डालता। शहरों की सरकार की जंग में भी मतदाता की मंशा तो पक्ष में थी, लेकिन लीडरशिप का मैसेज नहीं दिया जा सका। पार्टी भी विपक्ष की हैसियत से वोट नहीं लेना चाहती। सूबे की सरकार और शहरी सरकारों के चुनावों की हार का प्रमुख कारण भी लीडरशिप ही है।
(यह लेखक के अपने विचार हैं)