रियांबड़ी/पादु कलां। आज मदर्स डे है, इसलिए आज खबर नहीं एक ऐसी मां के संघर्ष की सच्ची कहानी बता रहे हैं, जिसने आज से 39 साल पहले एक विवाद के चलते पति की हत्या हो जाने के बाद भी हार नहीं मानी और विपरीत परिस्थितियों में संघर्षों से जूझते हुए लोगों के घरों में झाड़ू-पोछा, बर्तन व कपड़े धोकर अपने बच्चों का पालन पोषण किया, अच्छी शिक्षा दिलाई और उन्हें सफलता के मुकाम तक पहुंचाया। संघर्ष की यह कहानी चुंदिया निवासी स्व. पुखराज शर्मा की पत्नी गीतादेवी की है। शर्मा हैड कांस्टेबल थे। उनके 3 बेटे व एक बेटी है। करीब 39 साल पहले गांव में ही हुए एक जमीनी विवाद में शर्मा की हत्या कर दी गई। पति की हत्या के बाद डर के चलते गीता देवी सुरक्षा के लिए अपनी 15 वर्षीया बेटी लीला देवी, बड़े बेटे 13 वर्षीय अशोक रांकावत, मंझले बेटे 11 वर्षीय दिनेश रांकावत व सबसे छोटे बेटे 9 वर्षीय ओमप्रकाश रांकावत को लेकर अपने पीहर रियां बड़ी चली आई और यहां से शुरू हुई गीता के संघर्ष की कहानी।
पीहर में वृद्ध मां के सिवा नहीं था कोई सहारा
गीता देवी चारों बच्चों को पीहर रियां बड़ी लेकर आ गई, यहां उनकी वृद्ध मां के सिवा कोई सहारा नहीं था। फिर उन्होंने लोगों के घरों में काम किया। काम के बदले मिलने वाले पैसों से बच्चों का पालन-पोषण किया। उन्होंने बताया की काम करने वाले लोगों के घर से सुबह-शाम का खाना लाकर अपने बच्चों को खिलाती थी। गीतादेवी ने बताया कि पति की हत्या के बाद एक बार तो वे टूट चुकी थी। लेकिन बाद में बच्चों को देख ठान लिया कि अपने बच्चों को अच्छा पढ़ा-लिखा कर कामयाब बनाना है। इसके लिए उन्होंने दिन-रात काम करना शुरू कर दिया। गीता देवी ने बताया कि वो अच्छी खासी सिलाई भी जानती थी, ऐसे में वो दिन में लोगों के घरों में काम करती और रात में सिलाई का काम करती थी। इसके अलावा वो एक मंदिर में सेवा कार्य भी करती थी, जिसके चलते इन सभी कार्यों से होने वाली आय से उन्होंने अपने बच्चों को पढ़ाया लिखाया।
कठिन मेहनत से जीवन में किसी भी लक्ष्य को पाना मुश्किल नहीं
गीता देवी ने कहा कि आज उनका बड़ा बेटा अशोक रांकावत एमएससी कर श्रीराम फर्टिलाइजर्स लिमिटेड कम्पनी में जोनल मैनेजर है। मंझला बेटा दिनेश रांकावत एसपी ऑफिस नागौर में यूडीसी है और सबसे छोटा बेटा ओमप्रकाश रांकावत रियांबड़ी में एक बार उप सरपंच रह चुका हैं और वर्तमान में सरस डेयरी की दुकान करते हैं। गीता देवी ने बेटी की शादी भी की। गीता देवी ने बताया की मन में ठानकर कठिन मेहनत करते हुए जीवन में किसी भी लक्ष्य को पाना मुश्किल नहीं है। उन्होंने कहा की एक समय ऐसा भी था जब में लोगों के घरों में झाड़ू-बर्तन से लेकर कपड़े धोकर बच्चों का पालन पोषण करती थी, लेकिन मैंने हार नहीं मानी। गीता देवी के इस संघर्ष की कहानी को सुनकर लोग उनकी तारीफ़ किए बिना नहीं रहते है।