नागौर। ‘जो तुम सोचते हो वो हो जाओगे, यदि तुम खुद को कमजोर सोचते हो तो, तुम कमजोर। अगर खुद को ताकतवर सोचते हो तो तुम ताकतवर हो जाओगे’ इन पंक्तियों को ध्येय मानकर सिविल सर्विसेज (मुख्य) परीक्षा 2018 में सफलता हासिल करने वाली जिले के आकेली गांव की बेटी संतोष चौधरी आज बेटियों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गई है। कभी वे पायलट बनी तो कभी उन्होंने चन्द्रमा पर पानी की खोज के लिए इसरो में भी काम किया। आईएएस बनने के बाद भी उनमें सीखने और मेहनत का जज्बा कम नहीं हुआ। आईएएस की टेÑनिंग की डेट अभी नहीं आई है। आगामी दिसम्बर माह में टेÑनिंग शुरू होना बताया जा रहा है। उन्होंने समय का सदुपयोग करते हुए माता गीतादेवी से सिलाई का काम सीख रही हैं। उन्होंने बताया कि ड्यूटी ज्वॉइन करने के बाद जब भी समय मिलेगा तो वे अपने कपडेÞ खुद सिलेगी। उन्होंने कहा कि किसी हुनर को सीखने में कोई बुराई नहीं है। संतोष आईएएस बनने के बाद भी मां के सिलाई के काम में हाथ बंटाती है तो पिता से भी मार्गदर्शन लेती रहती है।
मालूम हो कि जिला मुख्यालय के जेएलएन अस्पताल में इलेक्ट्रीशियन पद पर कार्यरत सुखाराम गोलिया की पुत्री संतोष चौधरी ने सिविल सर्विसेज (मुख्य) परीक्षा 2018 की दूसरी सूची में 44 रेंक प्राप्त कर सफ लता प्राप्त की है। ’नवज्योति’ से विशेष बातचीत करते हुए संतोष चौधरी ने अपनी सफलता का श्रेय पिता सुखाराम व माता गीता देवी के अटूट विश्वास से सहयोग को दिया है। संतोष ने बताया कि उन्होंने जीवन में हमेशा पढ़ाई व स्वावलम्बन को प्राथमिकता दी।
परिश्रम ने दिलाई सफलता
तीसरे प्रयास में सफलता प्राप्त करने वाली संतोष ने बताया कि कठिन परिश्रम, सतत प्रयास व दृढ़ निश्चय के साथ यदि परिवार के लोगों का सहयोग मिले तो कोई भी मंजिल दूर नहीं है। संतोष ने ये सफलता बिना किसी कोचिंग प्राप्त की है। उन्होंने बताया कि एकाग्रता के साथ आईएएस की तैयारी में यदि कोई विद्यार्थी 10 हजार घंटे लगाता है तो निश्चित रूप से उसे सफलता मिल ही जाती है।
पायलट की ले चुकी है ट्रेनिंग
आईएएस बनी संतोष में हुनर सीखने का जज्बा बचपन से ही रहा है। सिलाई मशीन पर हाथ आजमा रही संतोष हवाई जहाज भी उड़ा चुकी है। स्वामी केशवानंद इंस्टीट्यूट आॅफ टेक्नोलॉजी से बीटेक व वनस्थली विश्वविद्यालय से एमटेक करने के दौरान संतोष ने पायलट की भी टेÑनिंग ली। करीब 6 माह की अवधि तक वे पायलट की भूमिका में रही। इसके बाद वे इसरो से जुड़ गई और करीब ढाई वर्षों तक अहमदाबाद में रहकर देश के प्रतिष्ठित रिसर्च संस्थान भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला में चंद्रमा व मंगल ग्रह पर पानी की खोज के विषय पर रिसर्च किया।