किसानों ने अपना संघर्ष और तेज कर दिया है। हरियाणा और उत्तर प्रदेश से जुड़ी दिल्ली की सरहदों पर प्रदर्शन करे रहे किसानों ने सोमवार सुबह से क्रमिक भूख हड़ताल शुरू कर दी है। किसान नेताओं के अनुसार प्रदर्शन कर रहे किसान अलग-अलग समूहों में भूख-हड़ताल करेंगे और हर समूह में 11 लोग रहेंगे। राजस्थान से आए किसानों ने भी जबर्दस्त भूमिका निभाई है। शाहजहांपुर बॉर्डर पर अखिल भारतीय किसान सभा के नेता अमराराम व पेमाराम की अगुवाई में राजस्थान के किसान डटे हैं। ठंड के बावजूद किसानों के हौसले बुलंद हैं।
आंदोलन में शामिल होने वाले किसानों की उपस्थिति दिनों दिन बढ़ती जा रही है और यह ज्यादा होती जा रही है। किसान मोर्चा की संयुक्त बैठक के बाद शाहजहांपुर बॉर्डर पर अमराराम के नेतृत्व में 11 साथी क्रमिक अनशन पर बैठे। इसी तरह बाकी मोर्चों पर भी किसान अनशन पर बैठे हैं। अब यह क्रम रोज चलेगा।। बकौल अमराराम, यह आंदोलन आम आदमी व किसानों के लिए आर-पार की लड़ाई है। इन काले कानूनों को वापस लेने तक यह संघर्ष जारी रहेगा। किसान जीतेगा और सरकार हारेगी। हिंदुस्तान अडानी-अंबानी की जागीर नहीं, यह 1 अरब 35 करोड़ लोगों का देश है, जिसको बड़ी मेहनत से किसानों और मजदूरों ने बनाया है। राजस्थान के अन्नदाता से अपील की है कि ज्यादा से ज्यादा संख्या मे बॉर्डर पर पहुंच कर किसानों के इस महाकुंभ में अपनी उपस्थिति की दर्ज कराएं ताकि इस आंदोलन से सरकार को काले कानून वापस लेने के लिए मजबूर किया जा सके।
साथ ही किसान यूनियनों ने रविवार को ऐलान किया कि वे 25 से 27 दिसंबर तक हरियाणा में सभी राजमार्गों पर टोल वसूली नहीं करने देंगे। किसानों के मुताबिक राजमार्गों पर टोल वसूली नहीं करने दी जाएगी। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान होते हुए यह जत्था दिल्ली पहुंचकर यहां चल रहे किसान आंदोलन में हिस्सा लेगा। जहां एक ओर देश में किसानों का आंदोलन तेज होता जा रहा है। मोदी सरकार का सियासी पाखंड भी चरम पर है। इस बीच, सरकार ने किसानों को बातचीत दोबारा शुरू करने को लेकर पत्र भेजा है। पर सरकार की यह चिट्ठी किसी सियासी पाखंड से कम है, क्योंकि उसमें बातचीत के लिए किसी भी तारीख नहीं है। सरकार और भाजपा किसान आंदोलन को कमजोर करने की कवायद में लगातार जुटी है।
खबर है कि उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में दिल्ली चलो को लेकर तैयारी कर रहे किसानों को योगी सरकार ने 50 लाख रुपए का नोटिस भेजा है। हालांकि बाद में सफाई दी कि वो 50 लाख नहीं 50 हजार था, लेकिन देश में यह नई चल रहा है कि किसी अंदोलन में शामिल होने वालों के खिलाफ सरकार की ओर से नोटिस भेजा जा रहा हो। हरियाणा सरकार की ओर से भी आंदोलन करे रहे किसानों को परेशान करने की तमाम खबरें आ रही हैं। कमाल देखिए कि कोरोना के बहाने संसद का शीतकालीन सत्र न करने का फैसला किया गया है। मगर दूसरी ओर, मुल्क के गृहमंत्री कोरोना की चिंता किए बगैर बंगाल में चुनावी सभा कर रहे थे।
सवाल है कि अगर संसद सत्र के लिए कोरोना का बहाना है, तो फिर चुनावी रैलियों के लिए यह बहाना क्यों नहीं लागू होना चाहिए? हालांकि तेज होते किसान आंदोलन के बरक्स मोदी सरकार को डर लगने लगा है, जिसका सबसे बड़ा सबूत खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का दिल्ली के गुरुद्वारा रकाबगंज में माथा टेकना है, क्योंकि किसान आंदोलन को केवल पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश भर का साबित करने की उनकी कोशिश नाकाम होती नजर आ रही है। मध्यप्रेदश के रायसेन में उन्होंने इस बात की पुरजोर कोशिश की थी कि किसानों का यह आंदोलन मुल्क के हिस्से के बड़े किसानों का है। मगर, मध्यप्रदेश के उनके बयान के बाद जिस कदर किसानों का आंदोलन तेज हुआ है यह आंदोलन की जमीनी हकीकत बयां करता है। किसानों को भ्रमित करने की भाजपा सरकारों की कोशिशें नाकाम हो चुकी हैं। अब तो इस आंदोलन में मजदूरों की बढ़ती भागीदारी भी मोदी सरकार के लिए बेहद चिंता का सबब बनने लगी है।
-शिवेश गर्ग (ये लेखक के अपने विचार हैं)