गुवाहाटी/अगरतला। नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी) के विरोध को लेकर असम में जारी आंदोलन ने उग्र रूप अख्तियार कर लिया है। राज्य में भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कई प्रमुख नेताओं के आवासों पर हमले की घटनाएं भी सामने आई है। इस बीच राज्य के तनावग्रस्त इलाकों में सेना ने फ्लैग मार्च किया है। असम में हिंसा की घटनाओं को देखते हुए विमान सेवा कंपनियों ने गुवाहाटी तथा डिब्रूगढ़ हवाई अड्डों को जाने वाली और वहां से आने वाली उड़ानें गुरुवार को लगातार दूसरे दिन रद्द कर दी जबकि नागर विमानन मंत्रालय ने कहा है कि वह स्थिति पर नजर बनाए हुए है। उधर त्रिपुरा में भी स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है। पिछले 24 घंटों के दौरान दो लोगों की मौत हुई है जबकि राज्य के विभिन्न जगहों पर दो पुलिसकर्मियों सहित 11 लोग घायल हुए हैं।
केंद्र ने स्थिति पर नियंत्रण के लिए असम में 5 हजार से अधिक अर्धसैनिक बल के जवानों की 24 टुकड़ियों को भेजने का निर्णय लिया है। प्रदर्शनकारियों ने मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल, केंद्रीय मंत्री रामेश्वर तेली और भाजपा विधायक प्रशांत फूकन के आवासों पर हमला किया और तोड़फोड़ की। राज्य के विभिन्न स्थानों पर आरएसएस के कार्यालयों पर भी हमले की रिपोर्टें हैं।
कर्फ्यू के बावजूद तोड़फोड़
गुवाहाटी में अनिश्चितकालीन कर्फ्यू लागू किए जाने के बावजूद देर रात कई स्थानों पर लोगों की भीड़ देखी गई। पुलिस ने लोगों को तितर-बितर करने के लिए हवा में गोलियां चलाई और लाठीचार्ज किया। चबुआ और पनीटोला रेलवे स्टेशनों पर 21:30 बजे उपद्रवियों ने तोड़फोड़ की। जिसके बाद गुवाहाटी और डिब्रूगढ़ के बीच चलने वाली सभी ट्रेनें स्थगित कर दी गई। असम में हो रहे हिंसक प्रदर्शन को नियंत्रण में करने के लिए केंद्र सरकार ने गुरुवार को वरिष्ठ पुलिस अधिकारी जेपी सिंह को भेजा है।
आईयूएमएल ने विधेयक को दी चुनौती
इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) ने नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी) के राज्यसभा में पारित होने के एक दिन बाद गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में विधेयक को चुनौती देने वाली याचिका दाखिल की। आईयूएमएल ने अपनी याचिका में कहा कि कृप्या नागरिकता संशोधन बिल को गैरकानूनी और निरर्थक घोषित करें। यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14,15 और 21 का उल्लंघन है। याचिका में दावा किया किया कि सीएबी गैरकानूनी, निरर्थक और असंवैधानिक है। आईयूएमएल ने आरोप लगाया है कि विधेयक संविधान के तहत समानता के मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट के सूत्रों के मुताबिक एक-दो सप्ताह के भीतर याचिका पर सुनवाई के लिए विचार किया जा सकता है।