जोधपुर । फरवरी आधा जाने पर है और अगले माह से परीक्षाओं का सीजन शुरू हो जाएगा। परिजनों की स्टूडेंट्स से आशा व अपेक्षाएं हैं। ऐसे में परीक्षा देने वाले बच्चों पर कई तरह से दबाव आ जाता है। पेपर को लेकर कई स्टूडेंट्स जीवन-मरण का सवाल बना लेते हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट पर गौर करे तो पता चलता है कि 2018 में आत्महत्या के 1 लाख 34 हजार 516 मामले सामने आए जो 2017 की तुलना में 3.6 फीसदी अधिक थे। चौंकाने वाली बात ये है कि जान देने वालों में 10159 विद्यार्थी थे। जो कि कुल सुसाइड केस का 7.6 फीसदी रहा। जबकि 12936 बेरोजगारों यानी 9.6 फीसदी ने भी अपने आप मौत को गले लगा लिया।
नवज्योति अपील
पेपर खराब हो तो कोई बात नहीं जीवन में और मौके आएंगे आगे बढ़ने के लिए, यह आखरी नहीं दैनिक नवज्योति विद्यार्थी वर्ग से अपील करता है कि पेपर खराब होने की सूरत में निराश नहीं हो। ये केवल परीक्षा है और जिंदगी यहां खत्म नहीं होती। आगे बढ़ने के और भी अवसर मिलेंगे। परीक्षा को मानसिकता पर हावी नहीं होने दे, एक पेपर से भविष्य नहीं बिगड़ता।
परिजनों से आग्रह-बच्चों पर दबाव नहीं बनाए, अकेला नही छोड़ें
नवज्योति टीम परिजनों से भी विनम्र आग्रह करती है कि अपने बच्चों पर अनावश्यक दबाव नहीं बनाए। उन्हें पास बिठाएं और परीक्षा के दौरान काउंसलिंग करते रहे। पेपर बिगड़ भी जाए तो यही कहें कि आगे अच्छा कर लेना कोई बात नहीं।
एक्सपर्ट व्यू : डॉ.सुरेंद्र कुमार प्रजापति, मनोरोग विशेषज्ञ, एमडीएमएच
परीक्षा के दिनों में बच्चों को लगता है कि हम सब भूल रहे हैं, कुछ याद नहीं है। इसका कारण तनाव का हावी होना है। एनराइटी ऑलवेज डिक्रीज द परफारमेंस। यानी तनाव हमेशा आपकी परफारमेंस को घटाता है। इस दौरान नींद, खाने-पीने का शेड्यूल बिगड़ जाता है। परिजनों से आग्रह है कि वे बच्चों की डाइट का ख्याल रखें और कम कैलोरी और एंटी ऑक्सीडेंट रीच फूड दें ताकि बच्चों के जेहन में पैदा होने वाले फ्री रेडीकल्स शरीर से बाहर निकले। बच्चों को 24 घंटे पढ़ाई-पढ़ाई नहीं करनी है। थोड़ा मनोरंज भी करना जरूरी है ताकि वे रिफ्रेश हो जाएं। डाइनिंग टेबल पर बच्चों को साथ में बैठकर भोजन कराएं और उनसे चर्चा करें और पेपर खराब हो जाए तो भी मोटिवेट करें। परीक्षा के दौरान बच्चों को चाय व काफी का कम सेवन करें क्योंकि इनमें कैफीन होता है जो कि आपके तनाव के लेवल को बढ़ा देता हैं।
और ये भी डराते हैं आंकड़ें...सरकारी की बजाय निजी नौकरी में दबाव ज्यादा
नौकरी : निजी क्षेत्रों में नौकरी करने वाले 5246 लोगों ने जान दी
रिपोर्ट के मुताबिक 1707 सरकारी कर्मचारियों ने सुसाइड की जो आत्महत्या करने वाले कुल लोगों में 1.3 फीसदी हैं। निजी क्षेत्रों में नौकरी करने वाले 5246 लोगों ने आत्महत्या की जो कुल संख्या का 6.1 फीसदी है।
बेरोजगार : रोज 35 बेराजगारों ने जान दी
प्रतिदिन औसतन 35 बेरोजगारों और स्वरोजगार से जुड़े 36 लोगों ने खुदकुशी की। इसके साथ ही इन दोनों श्रेणियों को मिलाकर उस साल 26,085 लोगों ने आत्महत्या की। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार उस साल 12,936 बेरोजगारों ने और स्वरोजगार से जुड़े 13,149 लोगों ने खुदकुशी की।