देईखेड़ा थाना क्षेत्र में गैंता माखीदा के समीप शनिवार को चम्बल नदी पर बनी पुलिया पर एक कार असंतुलित होकर रैलिंग से जा टकराई। टक्कर इतनी भयंकर थी कि गाड़ी के परखच्चे उड़ गए। वहीं छह जने घायल हो गए।
बूंदी जिले में चोरी छिपे कुछ लोग गलत तरीके से अफीम की खेती कर रहे हैं। इसका खुलासा सदर थाना पुलिस ने गुरुवार को सिलोर और माटुंदा में खेतों में कार्रवाई कर किया।
राज्य बजट जिले के लिए अच्छा माना जा रहा है। हिंडोली, नैनवां को काफी कुछ मिला है लेकिन बूंदी मुख्यालय को कुछ खास नहीं मिला। जिले के लिए सबसे खुशी की बात यह रही कि लंबे समय से चली आ रही कृषि कॉलेज की मांग सरकार ने पूरी कर दी।
बूंदी जिले के करवर के खजूरी पंचायत के पीपरवाला गांव निवासी सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य बृजमोहन मीणा ने अपने पुत्र की सगाई के कार्यक्रम के दौरान वधू पक्ष द्वारा दी 11 लाख 101 रुपए की राशि वापस लौटा कर दहेज प्रथा के खिलाफ एक नई आवाज उठा कर समाज को नया संदेश दिया है।
जिला अस्पताल प्रशासन की अनदेखी के चलते मुख्यमंत्री निशुल्क जांच योजना का जिले के एक मात्र सबसे बड़े अस्पताल में रोगियों को लाभ नहीं मिल रहा है। यहां निशुल्क जांचों के लिए रोगी दर-दर भटकने को मजबूर हो रहे है।
बूंदी शहर के सर्किट हाउस में गुरुवार को प्रभारी मंत्री परसादी लाल मीणा की जनसुनवाई हुई। जिसमें कांग्रेस कार्यकर्ताओं और लोगों ने समस्याएं रखी। हालांकि जनसुनवाई में शहर के लोगों ने कम रुचि दिखाई।
नैनवां थाना क्षेत्र के बड़ी पड़ाप कुम्हारों के झोपड़ा में दो बारातों की विदाई से पूर्व बड़ा हादसा हो गया। हादसे में एक दूल्हे सहित पांच बाराती घायल हो गए। घायलों को बुधवार को नैनवां सीएसची में भर्ती करवाया। जहां प्राथमिक उपचार के बाद तीन घायलों को रैफ र किया है।
बूंदी में बसंत पंचमी पर महारानी बालिका सीनियर सैकण्डरी विद्यालय में मंगलवार को गार्गी पुरस्कार एवं इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार वितरण समारोह आयोजित किया गया।
बूंदी-चित्तौड़ मार्ग स्थित भीमलत-अभयपुरा इको टूरिज्म क्षेत्र में इन दिनों प्रवासी, अन्त: प्रवासी व स्थानीय पक्षियों के कलरव से आबाद है। अभयपुरा बांध में इस साल मछली ठेका नहीं होने से बड़ी तादात में यहां विभिन्न प्रजातियों के प्रवासी पक्षियों की जल-क्रीड़ा व स्वच्छन्द कलरव देखा जा सकता है।
बरसो तक भले ही लाखों घरों में बूंदी जिले के केशवरायपाटन शुगर मिल की चीनी की मिठास घुली हो लेकिन करीब दो दशक से मौन पड़ी शुगर मिल भूमिपुत्रों के दर्द की दास्तां सुना रही है।